"Shiv or Trishul Ki Mahagatha | त्रिशूल बना संहार और सृजन करता भी | om namah shivay"


भगवान शिव ऐसे देवता माने जाते है जिनक न तो जन्म का कोई प्रमाण है और न ही उनके अंत की कोई बात है | शिव ही इस श्रृष्टि के निर्माण करता हैं और शिव ही श्रृष्टि के संहारक हैं | जब-जब इस श्रृष्टि में पैशाचिक शक्तियों ने आतंक मचाया है भगवान शिव ने इनका नाश किया है | भगवान शिव का स्वरूप औगड़दानी है उनके शरीर पर साप, बिच्छ, भूत, पिशाच, नाग, चंद्रदेव, रुद्राक्ष, डमरू और न जाने क्या क्या विराज मान है | इन्हीं में एक प्रमुख वस्तु है वह है भगवान शिक का दिव्य शस्त्र त्रिशूल जो हमेशा उनके समीम रहता है | भगवान भोलेनाथ त्रिशूल को अपने हाथ में धारण करें रहते हैं |  भगवान जिस त्रिशूल को धारण करते है वह कोई साधारण शस्त्र नहीं है | त्रिशूल सिर्फ विनाश का अस्त्र नहीं, बल्कि यह सृष्टि पालन और संहार के संतुल्न का शस्त्र है |

                  
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भगवान त्रिशूलधारी के त्रिशूल के विषय को लेकर पुराणों में कई कहानियां वर्णित हैं  |  राक्षसी शक्तियों और अधर्म का जब संसार में अत्याचार बढ़ने लगा तब सभी देवता एक जुट होकर ब्रम्हा विष्णु और महेश के पास पहुंचे | देवताओं ने ब्रम्हा, विष्णु और महेश से इन आसुरी शक्तियों से रक्षा करने का कहा | तब तीनों ने मिलकर एक दिव्य अस्त्र बनाने का निर्णय लिया जो सृष्टि की रक्षा करने वाला हो और साथ ही साथ जरूरत पढ़ने पर विनाशकारी भी हो | तब भगवान विश्वकर्मा ने एक ऐसे शस्त्र का निर्माण किया जो सूर्य से शक्ति लेकर आकाश, धरती और पाताल की धातुओं के साथ सृजित किया गया | जिसमें भगवान ब्रम्हा ने सृजन करने की शक्ति दी, भगवान विष्णु ने राजसिक शक्ति दी और भगवान शिव की विनाशक शक्ति से जिस शस्त्र का निर्माण हुआ वह था "त्रिशूल" ! इस त्रिशूल में तीनों शूल दर्शाते है शिव समय के पार है इनके लिए भूत, भविष्य वर्तमान का कोई बंधन नहीं है | सत्व, रज और तम तीनों गुणों पर शिव जी की सत्ता है | भगवान शिव ही है जो सृष्टि के पालक और संहारक है |

त्रिशूल में विनाश की शक्ति विद्यमान है जो असुरों, दैत्यों और दुर्जनों का विनाश करती है | शिव के हाथ में यह त्रिशुल हर प्राणि की राक्षा करने वाला है वहीं त्रिशूल अहंकार अज्ञान का अंत कर योग और ध्यान का केन्द्र बिन्दु भी है | महादेव के त्रिशूल की शक्ति को लेकर हजारों कहानियां विद्यमान है जिनमें से एक पुराणों में मिलती है कि युगों पहले की बात है तीन अत्यंत बलशाली राक्षर तीनों लोकों में आतंक फैला रहे थे | तीनों भाई थे और तीनों ने घोर तपस्या कर के भगवान ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर लिया था | तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें उनका मन चाहा वरदान दिया था | तीनों राक्षस भाईयों ने तीन राज्य मांगे थे जो हवा में उड़ रहे हो और तीनों अलगा अलग धातुओं से निर्मित हों | सक का राज्य स्वर्ण का हो दूसरे का रजत का और तीसरा लोह का  साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उन्हें कोई देवता , दानव और मार न सके जब तक तीनों नगर एक लाइन में खड़े न हो जाएं |  भगवान बृम्हा से वरदान मिलने के बाद तीनों भाईयों ने तीनों लोकों में अत्याचार शुरू कर दिया | परेशान होकर सभी देवता भगवान त्रिकालदर्शी की शरण में पहुंचे और रक्षा की गुहार लगाई | भगवान शिव ने जैसे ही तीनों नगर गृहों के परिवर्तन और वायु की चाल से एक ही लाइन ने आए तब भगवान शिव ने एक ही वार में त्रिशूल से तीनों नगरों को भस्म कर दिया सथ ही तीनों राक्षस भाइयों का भी अंत हो गया | कहा जाता है तभी से भगवान शिव को एक नया नाम मिला "त्रिपुरांतक" और शस्त्र को त्रिशूल नाम दिया गया |

इसके अलावा एक और कहानी का वर्णन मिलता है जब राक्षसों का तीनों लेको पर अत्याचार बद गया तब देवी गवित ने भगवान शिव को ये शस्त्र प्रजान किया था जिसके बाद भगवान शिव ने इन दुष्टों का अंत कर दिया था |  वहीं कुछ और स्थानों पर त्रिशूल के विषय में वर्णित है कि भगवान शिव के साथ युगों युगों से त्रिशूल साथ रहा है जब शिव की उत्पत्ति हुई होगी तभी से वह उनके साथ है | कहा जाता है जब अधर्म अपनी सीमाएं लांघता है, तब एक ही शक्ति होती है जो संहार करती है और वो है स्वयं श्री महादेव | "हर हर महादेव"

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