प्रवचन के मायने, धर्म की बातों के अलावा और भी हैं?
अमित कृष्ण श्रीवास्तव इवनिंग मिरर।
इन दिनों शहर में संत समागम से धार्मिक माहौल बना है। धार्मिक आस्थावान लोग बड़े आदर से संतों को नमन कर रहे हैं। संतों द्वारा प्रदत्त ज्ञान और भगवन कथा का श्रवण कर रहे हैं। ऐसे श्रोताओं धर्मावलंवियों को हमारा प्रणाम, संतों को शत्-शत् नमन। किंतु यहां हम उन स्वेत वस्त्रधारियों, पगड़ीधारियों, व्यापारियों, चाटुकारों और लोकल भाषा में कहें छर्रो की बात कर रहे हैं जो धार्मिक आयोजन में शामिल हो रहे हैं । किंतु नजरें जमी हैं रोटियां सैकने में। ठंड के इस मौसम में आज मैं गुनगनी धूप का आनंद लेने पांन की दुकान के पास खड़ा था। तभी तीन महासय जो नियमों को तांक पर रखकर एक ही फटफटिया पर बैठे पान की दुकान पर रूके । पान चबाकर..., खीसें निपोरते हुये आपस में बतियाने लगे। पहले महासय बोले जल्दी चलों यार प्रवचनों का समय हो चला है। आंगे की सीट भर जायेगी। फिर मजा नहीं आयेगा। कल आंगे बैठा था तो देखो मुफ्त में मीडिया में कैसी फोटो छपी है। बगल में नेताजी बैठे हैं। वह बोले जैसेे ही कैमरामैन ने अपने कैमरे का मुह हमारी ओर किया, हम झट से नेताजी की ओर सरक लिये। फोटो छपे पेपर को दिखाते हुये वह बोले, देखे यह फोटो ऐसा लग रहा है कि नेताजी से हमारा कुछ वार्तालाप चल रहा है। इस फोटो को बडिया फ्रेम कराकर दीवाल पर लगवाना है जिससे लोग समझे हमारा और नेताजी का कितना घनिष्ठ रिश्ता है। हे...हे...कर खीसें निपोरने लगे। फिर बोले एक एल्वम तैयार करना है। लोगों पर अच्छी धाग जमेगी। तभी दूसरे भैया जो शक्ल से छिछोरे दिख रहे थे बाले, हम तो टाइमपास के लिये यहां आ जाते हैं। नहीं तो हमारा और ऊपर वाले का 36 का आंकड़ा है। अरे हम तो यहां तनक अपनी आंखो की मसाज कर लेते हैं। तभी तीसरा बोला तुम दोनों महामूर्ख हो समय की बर्वादी कर रहे हो, हमें देखों, हम तो अपनी उन पार्टियों को पकड़ लेते हैं जिनसे हमको पैसा लेना है। यहां सभी आ रहे हैं। फिर तीनों ठहाका लगाकर हंसे, डुर्र... से फटफटिया पर बैठे और चल दिये। हम चुपचाप कुछ सामान खरीदने एक मनहारी की दुकान पर पहुंचे जहां चार महिलायें पहले से काबिज थीं। हम चुपचाप एक कौने में खड़े हो गये और महिलाओं की बातें सुनकर सन्न रह गये। एक महिला बुंदेलखंडी में बोली आज नई लिपस्टक ले लई हे, नई धुतिया (साड़ी) की मैचंग देख के पड़ौसन कल्लू की लुगाई जल के राख हो जे हे। हम तो तीन दिना से इत्तई के लाने परवचन में जा रये हे। दूसरी महिला बोली सांची केरईं, वा कल्लो हमें देखके सोई खूबई मो बनाउत हे। काल हमाये सोने के चूरा (चूडिय़ों) खो घूर रई ती। आज हम सोई मेचंग में जे हे। फिर देखियो व केसी भुज जे हे। तीसरी बोली काल कोन संत आये ते। तपाक से तीन महिलायें बोली कुजाने कोनऊं दाड़ी बारे हते। चौथी महिला बोली दो दिना पेले एक बाबा ने गौसेवा के ऊपरे अच्छो प्रवचन करो तो। तभी बात काटती हुई एक महिला बोली काय तुमाई कलुरिया (गाय) कितेक दूध देत हे। महिला गहरी सांस लेते हुये बोली वा मर नोई गई 15 दिना पेले। गइया को हमोरे दूध निकार के छोड़ देत हते और व दिन-भर रोड़ों पे बैठी रेत हती। कोनऊ ने ट्रक चढ़ा दओ सो बा मर गई। मनो ट्रक बारे खो पकड़ के पूरे 5 हजार झटके लालू के कक्का ने। दूसरी महिला बोली हमाई तो जा सास तीन टेम रोटी खात हे, ई डुकरिया के मारे हमोरें कहूं नई जा पात। 80 साल की होरई, मरत लो नैया! फिर वोली अरे कल बाबा ने वृतांत में बताओ तो मताई-बाप की सेवा से पुण्य मिलत है! इन सब बातों को सुनकर अब हम बिना सामान लिये वहां से निकल लिये। हम समझ गये संत समागम का असली मतलब क्या है? जो कोर कसर बांकी थी वह हमारे एक दुनियां जहां की खबर रखने वाले मित्र खबरीलाल ने पूरी कर दी। खबरीलाल हमारे घर पर चाय की चुस्कियां ले रहे थे। हमें देखकर वोले बडा समय लगा दिया आने में। हम एक शानदार खबर सुनाने आये हैं। अब सुनने के अलावां हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही कहां था। वह बोले हमने सुना है यहां कुछ सवाल उठाये जा रहे हैं? वह बोले कुछ दुकानदारों से दुकान लगाने के अच्छे पैसे वसूले गये हैं? और भीड़भाड़ के वाबजूद दुकानों पर सन्नाटा छाया रहा? फिर बोले अरे यहां लिफाफे भी खूब बांटे गये हैं, कहा गया है जो जिस की श्रद्धा हो इसमें रख दो? हमने उनको समझाया कि अपनी खबरें अपने तक ही रखों। यहां सब चलता है। धार्मिक आयोजन है ज्यादा कुछ कहोगे तो लेने के देने पड़ जायेंगे! वो मुंह पुचकाकर बोले, हमें क्या? हम क्या किसी पर आरोप लगा रहे हैं। हम तो सुनी-सुनाईं बातें आप को बता रहे हैं। नहीं सुननी तो हम चलते हैं । उठे और चलते बने, अब हमारी बुद्धी विचार शून्य है!
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